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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
बता दें हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के त्रिलोकीनाथ गांव में स्थित है, जिसे त्रिलोकीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस अद्भुत मंदिर की सबसे खास बात ये है यहां एक-साथ दो धर्म के लोग पूजा करते हैं।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
2760 मीटर की ऊंचाई पर त्रिलोकीनाथ गांव की सड़क के अंत में सफ़ेद रंग का सुंदर त्रिलोकीनाथ मंदिर दिखाई देता है। जिसे कैलाश और मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
वैसे तो लाहौल और स्पीति जिले में चंद्रभागा नदी के किनारे बसा हुआ ये छोटा सा कस्बा उदयपुर कई चीजों के लिए मशहूर है। मगर यहां का त्रिलोकीनाथ मंदिर इसको कई गुना और मशहूर करता है।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
बता दें इस मंदिर को बहुत खास माना जाता है। इसका कारण है यहां एक साथ दो धर्म के लोगों का पूजा-अर्चना करना। एक तरफ़ जहां इस मंदिर में हिंदू धर्म के प्रमुख देवता यानि भगवान शिव के स्वरूप त्रिलोकनाथ की पूजा की जाती है।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
तो वहीं दूसरो ओर यहां और बौद्ध आर्य अवलोकितेश्वर के रूप में भी पूजा की जाती है। लोक मान्यता के अनुसार यह दुनिया का इकलौता एसा मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की दो धर्मों के लोग एक साथ पूजा करते हैं।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
हिंदू धर्म की मान्यताओं की मानें तो इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा करवाया गया था। तो वहीं बौद्धों मुताबिक पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां आकर पूजा की थी। जिस कारण ये जगह उनके लिए बेहद खास है।
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कैलाश मानसरोवर के बाद पावन माने जाने वाला ये स्थान है अद्भुत, दो धर्मों के लोक एकसाथ करते हैं पूजा
स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर से कई रहस्य जुड़े हुए हैं, जिनके बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया। जिनमें से एक का किस्सा कुल्लू के राजा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि वह भगवान की इस मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन मूर्ति इतनी भारी हो गई कि उठाई नहीं गई।