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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
उत्तर प्रदेश के इटावा में कभी स्वर्णनगरी के रूप में विख्यात रहे लखना कस्बे के ऐतिहाससिक कालिका देवी मंदिर में दलित पुजारी की तैनाती के कारण देश में दलित चेतना की अलख जगाता हुआ दिख रहा है।
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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
मंदिर के मुख्य प्रबंधक रवि शंकर शुक्ला ने गुरूवार को यहां ‘‘यूनीवार्ता' को एक विशेष भेंट मे बताया कि मंदिर के प्रांरभकाल से दलितों को सम्मान देने के लिहाज से मंदिर का सेवक हमेशा से दलित को बनाये जाने की व्यवस्था की गई है।
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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
पुराने किस्सों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि राजा ने जब देखा कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं दिया जाता तो ऐलान किया था कि इस मंदिर का सेवक दलित ही होगा।
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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
तब से आज तक उसी दलित परिवार के सदस्य मंदिर की सेवा में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर के पुजारी अशोक दोहरे व अखिलेश दोहरे के पूर्वज महामाया भगवती देवी की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।
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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
इस मंदिर के प्रांगण में एक ओर जहां मंदिर में काली माता विराजती हैं तो वहीं उसी आंगन में स्थित सैयद पीर बाबा की दरगाह है, जो सांप्रदायिक एकता व सौहार्द की मिसाल है।
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मुगल काल में हिंदू-मुस्लिम की एकता का प्रतीक रहा है इटावा का कालिका देवी मंदिर
उनके मजार पर चादर, कौड़ियां एवं बताशा चढ़ाया जाता है। बताया जाता है कि सैयद बाबा की दुआ किए बिना किसी भक्त की मन्नत पूरी नहीं होती है।
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मंदिर के मुख्य प्रबंधक ने बताया कि मेले में देश के दूरदराज से आए श्रद्धालु अपनी मनौती मांगते हैं तथा कार्य पूर्ण होने पर ध्वजा, नारियल, प्रसाद व भोज का आयोजन श्रद्धाभाव से करते हैं।