रामायण काल से जुड़ा है गोवा का इतिहास
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    रामायण काल से जुड़ा है गोवा का इतिहास

    15 अगस्त, 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया था, लेकिन गोवा इसके बाद भी करीब 94 वर्षों तक पुर्तगालियों का गुलाम बना रहा। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने गोवा की आजादी का सिंहनाद किया था, जिसके बाद एक व्यापक आंदोलन की शुरूआत हुई।
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    19 दिसम्बर  1961 को भारतीय सेना ने सशस्त्र ऑप्रेशन शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप गोवा को पुर्तगाल के आधिपत्य से मुक्त कराकर भारत में मिला लिया गया। इसलिए 19 दिसम्बर को गोवा मुक्ति संग्राम, गोवा मुक्ति आंदोलन व गोवा मुक्ति संघर्ष के रूप में मनाया जाता है।
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    रामायण काल से जुड़ा है गोवा का इतिहास

    गोवा का प्रथम वर्णन रामायण काल में मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी के सूख जाने के कारण उनके किनारे बसे हुए ब्राह्मणों के पुनर्वास के लिए भगवान परशुराम ने समुद्र से शरसंधान किया।
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    ऋषि का सम्मान करते हुए समुद्र ने उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया। वह पूरा स्थान कोर्कण कहलाया और इसका दक्षिण भाग गोपपुरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है। भारत के लिए गोवा बेहद अहम था।
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    अपने छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सैंटर था और मर्चेंट्स, ट्रेडर्स को आकर्षित करता था। लाइम लोकेशन की वजह से गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षित हुए थे।
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    गौरतलब है कि 1350 ई. पू. में गोवा बाहमानी सल्तनत के अधीन चला गया। लेकिन 1370 में विजय नगर साम्राज्य ने इस पर फिर से शासन जमा लिया। विजय नगर साम्राज्य ने एक सदी तक इस पर तब तक आधिपत्य जमाए रखा जब तक कि 1469 में बाहमानी सल्तनत ने फिर से इस पर कब्जा नहीं जमा लिया।
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    रामायण काल से जुड़ा है गोवा का इतिहास

    1498 में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा के आने के बाद गोवा, पुर्तगालियों की दृष्टि में आया। 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध तक यहां पुर्तगालियों का कब्जा हो गया था। पुर्तगाली, भारत आने वाले पहले (1590) और  यहां उपनिवेश छोडऩे वाले आखिरी (1969) यूरोपीय शासक थे।