क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    इंदौर के शनि मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये इकलौता ऐसा मंदिर है जहां शनि महाराज स्वयं पधारे थे।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    आज हम आपको इनके ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में ये मान्यता प्रचलित है कि यहां खुद शनि देव प्रगट हुए थे। हम जानते हैं आपको ये जानकर हैरानी होगी लेकिन इंदौर के बारे में यहीं कहा जाता है।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    वैसे तो शनि मंदिर में महिलाओं के द्वारा पूजा करने पर काफी विरोध होता है लेकिन देश में एक ऐसा मंदिर है जहां महिला और पुरुषों दोनों को पूजा करने में कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि बाकि मंदिरों की तरह यहां शनि देव की काले रंग की प्रतिमा बिना श्रृगांर के नहीं है बल्कि यहां इनकी प्रतिमा का 16 श्रृंगार किया जाता है।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    यह मंदिर भी स्वनिर्मित है, इसे किसी संस्था या फिर ट्रस्ट द्वारा नहीं बनाया गया है। यहां प्रतिदिन प्रात: दूध और जल से शनि देव का अभिषेक किया जाता है, उसके बाद उनकी प्रतिमा को 16 श्रृंगार से सजाया जाता है। 16 श्रृंगार के बाद शनि महाराज का ये रूप आकर्षक लगने लगता है।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    मंदिर को लेकर मान्यता है कि मंदिर के स्थान पर करीब 300 साल पहले 20 फीट ऊंचा एक टीला था। जहां पर वर्तमान पुजारी के एक पूर्वज गोपालदास तिवारी रहते थे। उनकी आंखों में रोशनी नहीं थी।
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    एक दिन शनिदेव ने उनके सपने में आकर उन्हें बताया कि टीले के नीचे मेरी प्रतिमा है। गोपालदास देखने में असमर्थ थे तो उन्होंने शनिदेव से कहा, ‘हे प्रभु, मैं तो देखने में असमर्थ हूं। मैं आपकी प्रतिमा को कैसे देख सकता हूं।’
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    क्या आपने देखी है 16 श्रृगांर किए शनि देव की ये मूर्ति

    मगर शायद भगवान यह बात पहले ही समझ चुके थे। गोपालदास के स्वप्न से जागते ही जैसे ही उन्होंने आंखें खोली तो उनकी आंखों की रोशनी फिर से लौट आई। इस चमत्कार को देखकर आस-पास के लोगों को भी गोपालदास की बात पर यकीन हो गया।