जानें, शिव की नगरी में बसे भारत माता के मंदिर का इतिहास
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    जानें, शिव की नगरी में बसे भारत माता के मंदिर का इतिहास

    वाराणसी में एक मंदिर जो भारत माता के नाम से सुप्रसिद्ध है। ये मंदिर और कहीं नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की धार्मिक नागरियों में से एक वाराणसी में स्थित है, जिसे शिव की नगरी भी कहा जाता है।
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    बता दें राजघाट पर स्थित ये मंदिर अद्भुत मंदिर भारत माता को समर्पित है। मंदिर ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ के परिसर में स्थित है।
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    कहा जाता है कि भारत माता मॅनडियर का निर्माण बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने करवाया था। जबकि इसका उद्घाटन वर्ष 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा किया गया था।
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    बता दें कि यहां किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं है, केवल भारत का भू मानचित्र है, जो संगेमरमर के टुकड़ों पर उकेरा गया है।1913 में राष्ट्र रत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त को करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुंबई जाने का अवसर मिला था।
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    जहां से वह पुणे गए और धोंड़ो केशव करवे का विधवा आश्रम देखा। यहां उन्होंने देखा कि आश्रम में ज़मीन पर ‘भारत माता’ का एक मानचित्र बना था, जिसमें मिट्टी से पहाड़ एवं तीन नदियां बनी हुई थी।
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    वहां से लौटने के बाद शिवप्रसाद गुप्त ने इसी तरह का संगेमरमर का एक भारत माता मंदिर बनाने का सोचा और अपने मित्रों से इस संदर्भ में विचार-विमर्श किया
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    कहा जाता है कि उस समय के प्रख्यात इंजीनियर दुर्गा प्रसाद इस मंदिर को बनवाने के लिए तैयार हो गए और उनकी देखरेख में काम शुरू हो गया। 1936 के शारदीय नवरत्र में महात्मा गांधी ने पहले दर्शक के रूप में मंदिर का अवलोकन किया।
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    पांच दिन बाद यानि विजयदशमी को उन्होंने मंदिर का उद्घाटन किया। कहा जाता है कि भू मानचित्र तैयार करने में 20 शिल्पी लगे थे, जबकि मंदिर का बाहरी कलेवर 25 शिल्पियों ने लगभग पांच वर्ष में तैयार किया था।
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    दुनिया के इस अनोखे मंदिर का वर्तमान में ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ के परिसर में निर्माण हुआ। कहते हैं इसका उद्घाटन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपने संबोधन में कहा था की-
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    “इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों,सभी जातियों के लोगों के लिए एक सर्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण करेगा और देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति और प्रेम की भावना को बढ़ाने में अपना पूरा योगदान देगा।”
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    मंदिर की दीवार पर बंकिमचन्द्र चटर्जी की कविता ‘वनडे मातरम’ और उद्घाटन के समय सभा स्थल पर राष्ट्रकवि मैथिलिशरण गुप्त द्वारा लिखी गई कविता ‘भारत माता का यह मंदिर’ समता का संवाद है। कहा जाता है कि बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने इस मानचित्र को जननी जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठा दी।