Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान
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    Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

    नर्मदा में पावन स्नान को हिन्दू श्रद्धालुओं में पवित्र माना जाता है। उनका मानना है कि नर्मदा में किया स्नान पाप से छुटकारा दिलाता है तथा मुक्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।
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    अनेक वैज्ञानिकों ने कई प्रभागों द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि नर्मदा सरस्वती की ही एक धारा है जो कई मील जमीन में बहने के पश्चात पुन: कोटि तीर्थ में आकर प्रकट होती है।
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    नर्मदा नदी के रास्ते में अनेक नदियों का संगम तथा पवित्र स्थलों का निर्माण हुआ है। निराली प्रकृति सुंदरी के मनोभावों की ऐसी मनोहारी देन ‘भेड़ाघाट’ का दर्शन एवं धुआंधार फॉल का अनुभव अविस्मरणीय है।
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    Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

    नर्मदा की तरंगों के संगीत में अपने आप को आत्मसात करता हुआ जगह-जगह पक्षियों द्वारा करलव करते हुए प्रदेश युगों से अपने सौंदर्य की कहानी कह रहा है।
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    Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

    मध्यांचल एवं सतपुड़ा के बीच ‘अमरकंटक’ नामक ऊंचे पर्वत हैं। यहीं सोहागपुर जिले के अमरकंटक नामक गांव के कुंड के एक गोमुख से जलधारा प्रकट होती है। इस कुंड को कोटिकुंड तथा जलधारा को नर्मदा कहते हैं।
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    यह (नर्मदा) अमरकंटक से निकलने के 332 कि.मी. पश्चात मंडला से गुजरती है। मंडला से आगे नर्मदा का प्रवाह मंद हो जाता है तथा इसके आगे मध्य प्रदेश के जबलपुर में नर्मदा नदी की गोद में बसा है ‘भेड़ाघाट’ नामक सुंदर पहाड़ी स्थान।
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    Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

    भेड़ाघाट के बारे में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। एक के अनुसार भेड़ाघाट का नाम ऋषि भृगु के नाम से पड़ा, जो इसी जगह पर नर्मदा के किनारे रहा करते थे।
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    बंदर कूदनी नामक स्थल के बारे में भी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी ने लंका जाते समय नर्मदा को यहीं पार किया था।
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    एक दूसरी कथा के अनुसार संगमरमर की चट्टानों के बीच संकरा रास्ता देवराज इंद्र ने नर्मदा के लिए बनवाया था।
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    Bhedaghat waterfall: अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों की कहानी कहता है ये स्थान

    नर्मदा नदी के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित चौंसठ योगिनी का मंदिर 9वीं शताब्दी में शक्ति की उपासना का प्रतीक है। 9वीं शताब्दी में भेड़ाघाट का इलाका ‘त्रिपुरी’ के नाम से जाना जाता था।
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    भेड़ाघाट का चौसठ योगिनी मंदिर त्रिपुर क्षेत्र में शक्ति धर्म के योगिनी सम्प्रदाय के प्रभाव की ओर इंगित करता है। योगिनी दुर्गा की प्रतिरूप समझी जाती हैं।