Bihar panchami vrindavan: वृंदावन धाम का लोक उत्सव है श्री बिहार पंचमी महोत्सव, जानें श्री बांके बिहारी मंदिर का इतिहास
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    Bihar panchami vrindavan: वृंदावन धाम का लोक उत्सव है श्री बिहार पंचमी महोत्सव, जानें श्री बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

    उत्सव-धर्मिता वृंदावन की सबसे विशेषता रही है। यही कारण है कि यहां वर्ष में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वृंदावन उत्सव न मनाता हो।
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    इस वृंदावन में एक दिन ऐसा भी आता है जब उत्सव की उमंग और आनंद का ज्वार अपनी अछोरता में यहां के समस्त मंदिरों, मठों, आश्रमों, पंथों और संप्रदायों की सीमाओं को अपनी रसमयता में डुबोकर, एक रस कर उत्सव नहीं, लोकोत्सव मनाता है।
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    लोकोत्सव के इस महापर्व को प्रवासी और वृंदावन-वासी भक्त गण " श्री बिहार पंचमी " के नाम से पुकारते हैं।
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    पारंपरिक श्रुति के अनुसार के यदुकुल के पुरोहित श्री गर्गाचार्य के परिवार की एक शाखा कंस के दमन-चक्र के कारण मथुरा से पंजाब की ओर चली गई और वहां उन्होंने 'उच्च' नामक स्थान को अपना केंद्र बनाकर कृष्ण-भक्ति का प्रचार किया।
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    विक्रम की सोलहवीं सदी के आरंभ में इसी कुल में गोस्वामी गदाधर जी के यहां गोस्वामी आशुधीर जी का जन्म हुआ। कालांतर में आशुधीर जी उच्च को छोड़कर ब्रज चले आए और ब्रज के 'कोर' नामक स्थान को अपनी साधना-स्थली बनाया ।
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    यहीं पर उनके यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी जिसे राधा अष्टमी भी कहते हैं के दिन संवत् 1535 विक्रमी में स्वामी हरिदास जी का जन्म हुआ ।