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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
पंजाब के तरनतारन जिले में स्थित श्री गोइंदवाल साहिब नामक उपनगर प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत एक पवित्र स्थान है। गोइंदवाल साहिब का गुरुद्वारा ‘श्री बाउली साहिब’ इस क्षेत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
द्वितीय सिख गुरु श्री अंगद देव जी के खडूर साहिब में बसने के बाद, उनके बुजुर्ग सेवक भक्त श्री अमरदास जी उनके लिए विशेष रूप से ब्यास नदी का जल अपने वृद्ध कंधों पर उठाकर लाया करते थे।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
जब गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी सौंपी तो श्री गुरु अमरदास जी ने उस पवित्र स्थान पर, जहां से वह जल लाते समय गुरबाणी का पाठ किया करते थे, गुरुद्वारा ‘श्री बाउली साहिब’ बनवा कर ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ के पवित्र क्षेत्र का विकास किया और स्वयं भी वहां निवास कर लिया।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
गोइंदवाल साहिब में ही गुरु साहिबान द्वारा लंगर रूपी महान प्रथा की परम्परागत रूप से शुरूआत भी की गई जो बाद में सिख धर्म के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित हुई।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
श्री गोइंदवाल साहिब में ही सदियों के अंतराल के बाद इस प्रथा को पुन: स्थापित करवाया गया। किसी भी जाति, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव को दरकिनार कर स्थापित की गई यह प्रथा आज विश्व भर में अद्वितीय मानी जाती है।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
उल्लेखनीय है कि सन 1598 में लाहौर से आगरा जाते समय दिल्ली के सम्राट अकबर जब गुरु जी के दर्शन-दीदार करने श्री गोइंदवाल साहिब आए तो गुरु जी के आग्रह पर सम्राट अकबर ने जनसाधारण के बीच जमीन पर बैठ कर ही लंगर ग्रहण किया।
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Gurudwara Goindwal Sahib: सिख धर्म का धुरा ‘श्री गोइंदवाल साहिब’ से शुरू हुई लंगर की प्रथा
अकबर उस समय ‘लंगर’ की इस महान धारणा तथा सेवाभाव से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु जी को जमीन का टुकड़ा भेंट कर रुहानी आनंद अनुभव किया।