Jaigarh Fort Jaipur: ‘जयगढ़ के किले’ में छुपे हैं अनेक रहस्य, भैरव देव करते हैं रक्षा
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    Jaigarh Fort Jaipur: ‘जयगढ़ के किले’ में छुपे हैं अनेक रहस्य, भैरव देव करते हैं रक्षा

    जयपुर की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं पर स्थित जयगढ़ किला स्थापत्य तथा अपनी अद्भुत बनावट के लिए तो विख्यात है ही, परंतु आपातकाल के दौरान इसमें गढ़े खजाने की खुदाई के समय भी यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था।
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    हालांकि, लाखों रुपए व्यय करके खुदाई कार्यक्रम पूरे एक माह के करीब चलता रहा परंतु वह गढ़ा खजाना पाने में सरकार पूरी तरह विफल रही, मात्र एक सोने की मोहर तथा दो बंदूकें ही प्राप्त कर सकी। ‘खोदा पहाड़ और निकली चूहिया’ वाली कहावत इस मामले में पूरी तरह चरितार्थ हुई।
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    उल्लेखनीय है कि पहले जयगढ़ सम्पूर्ण रूप से बंद था परंतु 27 जुलाई, 1983 से इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था। तब से इस किले को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
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    सामरिक महत्व की दृष्टि से किले की वास्तु शिल्प कला बड़े ही अद्भुत कौशल का परिचय देती है। इस बात के पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं परंतु जनश्रुति यह है कि मान सिंह प्रथम ने अपनी बाईस छोटी रियासतों से जो पूंजी-सम्पत्ति इकट्ठी की थी, उसे सुरक्षित रखने के लिए इसी स्थान को चुना था।
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    यह वह समय था जब मान सिंह काबुल से लौट रहे थे तो उन्हें समाचार मिला कि उनके पुत्र जगत सिंह को मरवा दिया गया है तो उन्होंने अकबर से अपनी संपत्ति बचाने के लिए इस जगह सारा धन छिपा दिया था। इस कार्य में उसने नांगल गांव के सांधता मीणा की मदद ली और उसे ही देखरेख के लिए नियुक्त भी किया।
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    हालांकि जगत सिंह की मृत्यु में अकबर का हाथ था या नहीं, इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते क्योंकि जगत सिंह बुद्धि में कुशाग्र होने के कारण अकबर दरबार के नवरत्नों में से एक थे।
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    छुपाए धन के बारे में यह भी श्रुति है कि बाद में जय सिंह ने इस धन का उपयोग जयपुर को बसाने में किया था।
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    जिस जगह धन गाड़ा गया था वह चील का टीला नाम से जाना जाता था और तब तक किले का निर्माण भी नहीं हो पाया था। इस किले का विधिवत निर्माण कार्य राजा मान सिंह प्रथम ने 1600 ईस्वी में करवाया।
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    अठारहवीं शताब्दी में सवाई जयसिंह ने इस किले को पूरा करवाया तभी से यह किला जयगढ़ नाम से जाना जाने लगा। यह किला करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बा तथा आधा किलोमीटर चौड़ा है।
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    किले में प्रवेश के साथ ही जलेब चौक आता है। यहां सेना के लिए बैरके हैं तथा युद्ध की दृष्टि से यह चौक बहुत ही महत्वपूर्ण है। मान सिंह द्वितीय ने बाद में इन्हें बंद करा दिया था। इसके बाईं तरफ एक मुख्य दरवाजा है।