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Jwala ji: बिना तेल-बाती के जलती हैं अखंड ज्योतियां, अकबर हुआ था नतमस्तक
भक्त ध्यानू हर वर्ष ज्वाला माता की पूजा करने यहां आया करता था। एक बार रास्ते में उसे अकबर बादशाह मिला और उसने पूछा तो भक्त ध्यानू ने कहा माता ज्वाला के दर्शन करने जा रहा हूं। अखंड ज्योतियां बिना तेल-बाती के जलती हैं।
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Jwala ji: बिना तेल-बाती के जलती हैं अखंड ज्योतियां, अकबर हुआ था नतमस्तक
अकबर ने कहा वहां जाकर ज्योतियां देखकर कहा इन्हें तो मैं अभी बुझा देता हूं और लोहे के तवे से उन्हें ढंकने का आदेश दिया मगर ज्योतियां लोहे का तवा फाड़ कर बाहर आ गईं तो अकबर ने ऊपर से नहर चलाने का आदेश दिया।
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ध्यानू के घोड़े का शीश काट डाला और कहा कि इसे तेरी माता से जिंदा करवा तो मैं भी शक्ति को मान जाऊंगा या फिर तेरा भी शीश घोड़े की तरह काट दूंगा।
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ध्यानू ने माता की स्तुति की और रात भर जागरण करके कहा कि यदि घोड़ा जिंदा न हुआ तो मैं माता तेरे चरणों में मर जाऊंगा और वह अपनी ही तलवार से अपना शीश काट कर ज्योति के आगे रखने लगा तो ज्वाला माता ने प्रकट होकर ध्यानू का सिर धड़ से मिला दिया और घोड़ा भी जिंदा कर दिया।
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अकबर सवा मन सोने का छत्र लेकर माता के चरणों में आया मगर उसके मन में अहंकार हो गया कि माता एक मैं ही तेरे चरणों में शाही भक्त आया हूं जो सवा मन सोने का छत्र लाया हूं।अहंकार में डूबा अकबर ज्यों ही मंदिर में दाखिल हुआ तो अकबर के कंधे पर रखा हुआ छत्र एक ओर जा गिरा तथा अष्टधातु का हो गया।
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अकबर ने परीक्षा न लेने का प्रण लेते हुए क्षमा मांगी, तो माता ने साक्षात दर्शन दिए। आज भी यह अष्ट धातु का बना छत्र मंदिर के एक ओर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा हुआ है।
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भक्तजन यहां भवन, गोरख टिबी, वीर कुंड, 24 अवतारों की मूर्तियां, राधा कृष्ण मंदिर, शिव शक्ति लाल शिवालय, काल भैरो मंदिर, सिद्धि नागार्जुन, सीता राम मंदिर, कपिल स्थल, तारा देवी मंदिर तथा बहुत से अन्य मंदिरों के भी दर्शन करते हैं।