Kashi Varanasi: आज भी काशी में विराजते हैं भगवान शिव, जानें इस प्राचीन नगरी की महिमा
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    Kashi Varanasi: आज भी काशी में विराजते हैं भगवान शिव, जानें इस प्राचीन नगरी की महिमा

    प्राचीन बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि वाराणसी बुद्ध काल (कम-से-कम पांचवीं ईसा पूर्व शताब्दी) में चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत एवं कौशाम्बी जैसे महान एवं प्रसिद्ध नगरों में गिनी जाती थी। विश्व में ऐसा कोई नगर नहीं है।
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    Kashi Varanasi: आज भी काशी में विराजते हैं भगवान शिव, जानें इस प्राचीन नगरी की महिमा

    अपनी महान जटिलताओं एवं विरोधों के कारण यह नगर सभी युगों में भारतीय जीवन का एक सूक्ष्म स्वरूप रहता आया है। वाराणसी या काशी के विषय में महाकाव्यों एवं पुराणों में हजारों श्लोक कहे गए हैं।
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    प्राचीन जैन ग्रंथों में भी वाराणसी एवं काशी का उल्लेख हुआ है। अश्वघोष ने अपने ‘बुद्धचरित’ में वाराणसी एवं काशी को एक-सा कहा है। वहां लिखा है कि बुद्ध ने वाराणसी में प्रवेश करके अपने प्रकाश से नगर को प्रकाशित करते हुए।
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    हरिवंश पुराण के अनुसार काशी को बसाने वाले भरतवंशी राजा ‘काश’ थे। स्कंदपुराण के मत से भगवान शंकर ने काशी को सबसे पहले आनंद वन कहा और फिर अविमुक्त कहा। काशी शब्द ‘काश’ (चमकना) से बना है।
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    वाराणसी शब्द की व्युत्पत्ति कुछ पुराणों ने इस प्रकार की है कि यह ‘वरणा’ एवं ‘असि’ नामक दो धाराओं के बीच में है, जो क्रम से इसकी उत्तरी एवं दक्षिणी सीमाएं बनाती हैं।
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    पुराणों में बहुधा वाराणसी एवं अविमुक्त नाम आते हैं। बहुत-से पुराणों के मतानुसार इस पवित्र स्थल का नाम अविमुक्त इसलिए पड़ा कि शिव ने इसे कभी नहीं छोड़ा। स्कंदपुराण अनुसार यह पवित्र स्थल आनंदकानन है।
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    मत्स्यपुराण (185/68-69) के अनुसार काशी में विश्वनाथ के अलावा 5 प्रमुख तीर्थ हैं : दशाश्वमेध, लोलार्क (काशी में कई सूर्य-तीर्थ हैं, जिनमें एक लोलार्क भी है), केशव, बिन्दुमाधव एवं मणिकर्णिका।