Konark Sun Temple: मूल कोणार्क मंदिर का पतन अब भी है रहस्य, अद्भुत प्रतिमाएं करती हैं मंत्रमुग्ध
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    Konark Sun Temple: मूल कोणार्क मंदिर का पतन अब भी है रहस्य, अद्भुत प्रतिमाएं करती हैं मंत्रमुग्ध

    उड़ीसा के शांत समुद्र तट के पास स्थित कोणार्क मंदिर ओडिसी शिल्पकला का अद्भुत नमूना है। ऐतिहासिक और पुरातात्विक दोनों ही दृष्टि से कोणार्क के सूर्य मंदिर की अपनी विशिष्टता है।
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    Konark Sun Temple: मूल कोणार्क मंदिर का पतन अब भी है रहस्य, अद्भुत प्रतिमाएं करती हैं मंत्रमुग्ध

    भुवनेश्वर से कोणार्क 65 किलोमीटर दूर है। मंदिर की शिल्पकला की विशेषता है कला की बारीकी। दीवारों पर बनी पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं, मनुष्यों, अप्सराओं, लताओं की पच्चीकारी रुचिकर लगती है।
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    सूर्य की किरणों के साथ-साथ मंदिर की भाव-प्रतिमाओं में भी परिवर्तन आ जाता था। मंदिर में सूर्य के पौराणिक स्वरूप की कल्पना को साकार किया गया है। मूल कोणार्क मंदिर तो कब का टूट चुका है।
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    प्राचीन काल में जब सूर्य की किरणें विभिन्न मंडपों से होती हुई सूर्य की प्रतिमा पर पड़ती थीं, तब प्रतिमा का मुख शांत एवं सौम्य प्रतीत होता था।
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    इसी प्रकार मध्याह्न में सूर्य की किरणें सीधी पड़ने से प्रतिमा के चेहरे पर कठोरता और सायंकालीन सूर्य की किरणों के प्रभाव से थकावट का भाव देखा जा सकता है।
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    इसे 1245-56 ई. के दौरान महाराज नरसिंह देव (प्रथम) ने बनवाया था, जिन्हें लांगुला नरसिंह देव भी कहते हैं। जान पड़ता है कि मूल रूप में इससे भी पहले इसी स्थान पर प्राचीन सूर्य मंदिर था।
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    मंदिर का शिखर बहुत ऊंचा था। उसमें अनेक मूर्तियां प्रतिष्ठित थीं। 1824 ई. में स्टरलिंग नामक अंग्रेज ने इस मंदिर को देखा था। उस समय यह नष्टप्राय: अवस्था में था।