यहां हरियाली तीज पर बांके-बिहारी झूलते हैं झूला, जानिए इससे जुड़ी परंपरा
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    यहां हरियाली तीज पर बांके-बिहारी झूलते हैं झूला, जानिए इससे जुड़ी परंपरा

    बताया जाता है हरियाली तीज का ये त्यौहार हर साल ब्रज के बांके-बिहारी मंदिर में भी मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग यहां बांके-बिहारी के दर्शन के साथ-साथ यहां की हरियाली तीज का भी लुत्फ़ उठाने आते हैं।
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    यहां हरियाली तीज पर बांके-बिहारी झूलते हैं झूला, जानिए इससे जुड़ी परंपरा

    शिव शंकर के साथ-साथ श्रीकृष्ण का भी सावन सबसे प्रिय महीना है, जिसमें वे सखी-सहेलियों के साथ झूला झूलते हैं। प्राचीन समय से ये परंपरा ब्रज के मंदिरों में चली आ रही है।
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    बता दें ब्रज के मंदिरों में ठाकुर जी को झुलाने के इस उत्सव को ही हिंडोला उत्सव कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 500 साल पहले संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास बिहारीजी को फूल-पत्ती व कपड़े आदि से निर्मित झूले में झूला झुलाते थे।
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    यहां हरियाली तीज पर बांके-बिहारी झूलते हैं झूला, जानिए इससे जुड़ी परंपरा

    आज के समय में भक्त इन्हें सोने-चांदी से बने भव्य हिंडोले में झूला झुलाते हैं। बताया जाता है बांके बिहारी के इस झूले जैसा झूला विश्व में और कहीं नहीं है। सोने के इस हिंडोले के अलग-अलग कुल 130 भाग हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षक है।
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    बताया जाता है ठाकुर जी के झूले का निर्माण भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने श्रद्धालुओं के सहयोग से लाखों रुपये व्यय करके करवाया था। 15 अगस्त 1947 को जब देश आज़ाद हुआ तो उस दिन हरियाली तीज थी और इसी दिन पहली बार ठाकुर जी इस हिंडोले में विराजमान हुए थे।
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    हरियाली तीज के इस खास मौके पर शनिवार को बांकेबिहारी स्वर्ण-रजत हिंडोले में बैठ झूलेंगे। आराध्य के चारों ओर ब्रजगोपियां उनकी सेवा में समर्पित नज़र आएंगी।
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    मंदिर में सावन की मल्हार के साथ होली के पदों का गायन भी होगा। ऐसे विलक्षण पलों का साक्षी बनने को देश दुनिया में बसे बांकेबिहारी के भक्त आराध्य की एक झलक पाने को वृंदावन पहुंच रहे हैं।