Shimla: अंग्रेजों के समय में Summer Capital के नाम से मशहूर था शिमला जानें, इसके पीछे की वजह
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    Shimla: अंग्रेजों के समय में Summer Capital के नाम से मशहूर था शिमला जानें, इसके पीछे की वजह

    शिमला का लगभग 83 सालों का इतिहास ब्रिटिश हुकूमत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष से जुड़ा हुआ है। अनेक गवर्नर जनरल, वायसराय और कमांडर आए तथा शिमला में अपने शौक तथा सनक के किस्से छोड़ गए।
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    Shimla: अंग्रेजों के समय में Summer Capital के नाम से मशहूर था शिमला जानें, इसके पीछे की वजह

    शिमला शहर अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। वर्ष 1913-14 में चीनी, ब्रिटिश और तिब्बती प्रतिनिधियों की त्रिपक्षीय वार्ता यहीं हुई। आज भी चर्चा में आने वाली ‘मैकमोहन रेखा’ उसी का नतीजा है।
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    सन् 1883-85 के मध्य ए.ओ. ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बीज यहीं जाखू स्थित ‘रोथनी कैसल’ में रहते हुए उगाया और 1906 में मुस्लिम लीग के गठन का सूत्रपात भी शिमला में ही हुआ। दोनों विश्व महायुद्धों के दौरान शिमला में राजनीतिक गतिविधियां तेज रहीं।
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    बर्मा की शरणार्थी सरकार भी कुछ अरसा अस्थायी तौर पर शिमला में रही। इस बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गूंज 1857 से ही शिमला शहर और इन हिमालयन क्षेत्रों में गर्माने लगी थी।
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    वायसराय के कई निवास बदलने के बाद लॉर्ड डफरिन ने 1888 में वायसरीगल लॉज का निर्माण करवा लिया था। यही आलीशान इमारत सियासी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी, जिसमें अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान है।
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    इसी लॉज में जून 1945 की ‘शिमला कांफ्रैंस’ प्रमुख ऐतिहासिक घटना थी। उस दौर के भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता इसमें भाग लेने के लिए शिमला आए थे।
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    कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव यहीं तैयार किए गए थे और भारत के बंटवारे का मनहूस मसौदा भी शिमला में पेश हुआ था। अंतिम वायसराय लॉर्ड माऊंटबैटन ने ब्रिटिश कूटनीति को शिमला शहर में अंजाम दिया था।