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Shree Rani Satiji Mandir Jhunjhunu: रानी सती मंदिर बयां करता है पतिव्रता महिला की दास्तां, जिन्होंने अपने चूड़े से प्रज्वलित की थी चिता की अग्नि
राजस्थान के झुंझुनू जिला स्थित रानीसती दादी का मंदिर (Shree Rani Satiji Mandir Jhunjhunu Rajasthan) सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। यहां हर वर्ष भादव अमावस्या और मार्गशीर्ष बदी नवमी को भव्य मेला लगता है।
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Shree Rani Satiji Mandir Jhunjhunu: रानी सती मंदिर बयां करता है पतिव्रता महिला की दास्तां, जिन्होंने अपने चूड़े से प्रज्वलित की थी चिता की अग्नि
वैसे साल के 12 महीनों ही देश के कोने-कोने से दादी भक्त दर्शन करने झुंझुनू मंदिर पहुंचते हैं, लेकिन भादव अमावस्या व मार्गशीर्ष बदी नवमी को झुंझुनू पहुंचने वाले दादी भक्तों की संख्या लाखों में होती है।
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Shree Rani Satiji Mandir Jhunjhunu: रानी सती मंदिर बयां करता है पतिव्रता महिला की दास्तां, जिन्होंने अपने चूड़े से प्रज्वलित की थी चिता की अग्नि
रानीसती मंदिर उस नारायणी के पतिव्रता होने का प्रतीक है, जिन्होंने अपने चूड़े से चिता की अग्नि प्रज्ज्वलित की थी।
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Shree Rani Satiji Mandir Jhunjhunu: रानी सती मंदिर बयां करता है पतिव्रता महिला की दास्तां, जिन्होंने अपने चूड़े से प्रज्वलित की थी चिता की अग्नि
दादी भक्तों की आपार आस्था का रानीसती का यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। इतिहास खंगालने पर ज्ञात होता है कि नारायणी देवी द्वापर युग के महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के मित्र अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी।
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जब अभिमन्यु महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए, तब उत्तरा ने श्रीकृष्ण से अपने पति के साथ जाने की इजाजत मांगी और श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में पल रहा पुत्र कलयुग का राजा परीक्षित होगा, इसलिए तुम्हारी यह इच्छा अभी नहीं, बल्कि कलिकाल में पूर्ण होगी।
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कालक्रम में नारायणी का जन्म हरियाणा के अग्रवाल परिवार के बेहद संपन्न धनकुबेर सेठ श्री गुरुस्मालजी गोयल के घर में सावंत 1338 कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन शुभ मंगलवार रात्रि 12 बजे के बाद हरियाणा की प्राचीन राजधानी महम नगर में हुआ था।