माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    राजस्थान की शान जोधपुर शहर अपनी बेमिसाल हवेलियों की भवन निर्माण कला, मूर्ति कला तथा वास्तु शैली के लिए दूर-दूर तक विख्यात है।
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    इसी शहर में 400 फुट ऊंचे शैल के पठार पर स्थित है भारत के सबसे विशाल किलों में से एक मेहरानगढ़ का भव्य किला।
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    यह किला जहां वर्तमान नरेश महाराजा गजसिंह के राज-परिवार का निवास है, वहीं इसी किले में भव्यता का प्रतीक एक म्यूजियम तथा आदिशक्ति मां जगदम्बा का प्राचीन मान्यता प्राप्त श्री चामुंडा देवी मंदिर भी स्थित है,
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    जो किले के दक्षिणी भाग में सबसे ऊंची प्राचीर पर है। श्री चामुंडा मंदिर जोधपुर के महाराजाओं का तो ईष्ट देवी मंदिर है ही, लगभग सारा जोधपुर शहर ही इस मंदिर में देवी को अपनी ईष्ट अथवा कुल देवी मानता है।
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    इस मंदिर में देवी की मूर्ति 1460 ई. में मंडोर के तत्कालीन राजपूत शासक राव जोधा, जो कि चामुंडा देवी का एक परम भक्त था, द्वारा अपनी नवनिर्मित राजधानी जोधपुर में बनाए गए इस भव्य किले में स्थापित की गई।
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    माता श्री चामुंडा का 562 वर्ष प्राचीन मंदिर, देवी बैठी की बजाय चलने की मुद्रा में आती हैं नजर

    किले की छत पर विराजमान यह मंदिर मूर्ति कला तथा भवन निर्माण कला की एक अनूठी मिसाल है, जहां से सारे शहर का विहंगम दृश्य नजर आता है।