Story of Godavari river : जानें, गोदावरी की कथा
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    Story of Godavari river : जानें, गोदावरी की कथा

    पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी नामक शिखर पर जो त्रयम्बक पर्वत का एक बिंदू-सा है, उसके सामने स्थित ‘गौमुख’ से एक पतली धारा के रूप में गोदावरी नदी निकलती है। स्थान को ‘गंगा द्वार’ कहते हैं।
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    यहां से निकल कर रामकुंड व फिर लक्ष्मणकुंड नामक दो प्राकृतिक सरोवरों से होती हुए त्रयम्बक के निकट बने कुशावर्त कुंड में प्रवेश करती है। यह चौकोर तालाब है। यही त्रयम्बकेश्वर शिवलिंग भी है।
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    कुशावर्त कुंड के पश्चात 10 किलोमीटर तक गोदावरी धरती के भीतर ही बहती है तथा फिर चक्रतीर्थ में प्रकट होती है। वहां से यह नासिक पहुंचती है। नासिक को ‘दक्षिण की काशी’ भी कहते हैं।
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    गोदावरी के एक तट पर नासिक है व दूसरी ओर पंचवटी है। इसके आगे टाकली में इससे एक छोटी नदी और मिलती है। नासिक का पुराना नाम ‘सुगंधा’ था। इसके आगे मूला नदी 480 किलोमीटर व प्रवरा नदी 300 किलोमीटर आकर गोदावरी में मिलती हैं।
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    आगे यह पैठन से गुजरती है जिसका पुराना नाम ‘प्रतिष्ठानपुर’ था। चंदोर, अंजता व अकोला, बालाघाट पर्वतों के बीच स्थित नासिक की घाटी से भी 800 किलोमीटर आगे तक गोदावरी बहती है।
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    पैठन के आगे ‘यौगेश्वरी’ नामक तीर्थ पर बेलगंगा व वर्धा नदियां गोदावरी में मिलती हैं। योगेश्वरी के बाद पुणताबे व कोपरगांव से होती हुई गोदावरी पाथरी गांव पहुंचती है। इसके आगे इसमें कई नदियां मिलती हैं।
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    दक्षिण से सिंधु नदी इसमें आकर मिल जाती है। पाथरी के आगे गंगाखेड़ पर दुदना व पूर्णा नदियां इसमें आकर मिलती हैं। इसके बाद उत्तर-पूर्व में करीमनगर जिले में पानेर नदी मिल जाती है।
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    इसके बाद इंद्रावती, शबरी व किन्नर नदियां भी इसमें आ मिलती हैं। यह स्थान भद्राचल कहलाता है। इसके बाद गोदावरी 32 किलोमीटर सफर वनों में पूर्ण करती है।