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शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय
प्राचीनकाल की बात है जब ज्योतिषियों ने गणना की तो पाया कि शनैश्चर कृतिका के अंत में जा पहुंचे हैं। अत: उन्होंने महाराज दशरथ को सूचित किया।
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शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय
यह सुनकर राजा दशरथ ने मंत्रिपरिषद की बैठक की। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा, ‘‘इस संकट को रोकने के लिए क्या उपाय किया जाए?’’
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शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय
वशिष्ठ जी बोले, ‘‘राजन, यह रोहिणी प्रजापति ब्रह्मा जी का नक्षत्र है, इसका भेद हो जाने पर प्रजा कैसे रह सकती है? ब्रह्मा और इंद्र आदि के लिए भी यह योग असाध्य है।’’
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वशिष्ठ जी की बात सुनकर दशरथ असमंजस की स्थिति में पहुंच गए। अंत में उन्होंने मन में साहस किया तथा दिव्य धनुष लेकर रथ में सवार हो वे अत्यंत वेग से नक्षत्रमंडल में पहुंच गए।
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उसे देख कर शनि भयभीत हो गए फिर उन्होंने हंसते हुए महाराज दशरथ से कहा, ‘‘राजन, आपका महान पुरुषार्थ शत्रु को भय पहुंचाने वाला है। मेरी दृष्टि में आकर देवता, असुर, मनुष्य सबके सब भस्म हो जाते हैं लेकिन आप बच गए।
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तब दशरथ ने कहा, ‘‘शनिदेव, जब तक नदियां और समुद्र हैं जब तक सूर्य और चंद्रमा सहित पृथ्वी स्थित है तब तक आप रोहिणी का भेदन करके आगे न बढ़ें, साथ ही कभी दुर्भिक्ष न करें।’’
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शनि ने वरदान देते हुए कहा, ‘‘एवमस्तु।’’ दो वर पाकर महाराज दशरथ बड़े ही प्रसन्न हुए। अत्यधिक प्रसन्नता के कारण उनके शरीर में रोमांच हो आया। उन्होंने रथ के ऊपर ही धनुष डाल दिया फिर रथ से नीचे उतर कर वे शनिदेव की स्तुति करने लगे।
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शनि देव के मुख से जानें, उन्हें खुश करने का उपाय
महाराज दशरथ के स्तुति करने पर शनि ने कहा, ‘‘हे राजेंद्र आपकी स्तुति से मैं प्रसन्न हूं आप वर मांगिए, मैं अवश्य दूंगा।’’
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तब दशरथ ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हे सूर्यनंदन! आज से आप किसी भी प्राणी को पीड़ा न दें।’’ शनि बोले, ‘‘राजन, जो श्रद्धा से युक्त, पवित्र और एकाग्रचित होकर मेरी लौहमयी प्रतिमा का शमी-पत्रों से पूजन करके तिलमिश्रित उड़द-भात...
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लोहा, काली गौ या काला वृषक्ष ब्राह्मण को दान करता है तथा विशेषत: मेरे दिन को मेरे स्तोत्र से मेरी पूजा करता है, पूजन के पश्चात भी हाथ जोड़ कर मेरे स्तोत्र का जाप करता है, उसे मैं कभी पीड़ा नहीं दूंगा।