नीलमत पुराण में कश्मीर को बताया है काश्यापी, जानें क्या कहता है ये पुराण
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    नीलमत पुराण में कश्मीर को बताया है काश्यापी, जानें क्या कहता है ये पुराण

    नीलमुनिकृत नीलमत पुराण, राजतरंगिणी के रचायिता कल्हण, आचार्य अभिनव गुप्त एवं महाराजाधिराज ललितादित्य (अविमुक्तापीड) के नाम आज की पीढ़ी एवं सामान्यजन के लिए अपरिचित हो सकते हैं, पंरतु इन तीनों के साथ, हमारे नामों के पूर्व ‘श्री’ लगने की श्रेष्ठ परंपरा वस्तुत: कश्मीर एवं श्रीनगर की ही देन है।
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    अवन्तीपुरम, मार्तंड-मंदिर (सूर्य मंदिर) मट्टन, श्रीनगर इत्यादि नाम हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं।
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    कहा जाता है कश्मीर और उसके इतिहास व वर्तमान तक के विषय में अज्ञानता, अपने चश्मे से देखने की संकुचित दृष्टि, झूठे प्रचार तंत्र तथा बहुत हद तक सामान्यजन की बौद्घिक उदासीनता ही है, जिस कारण कश्मीर पर सही दृष्टि को विकसित होने का बहुत कम अवसर दिया गया है।
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    श्मीर घाटी शिव की अर्धांगिनी ‘पार्वती’ का प्रदेश है। महाराजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का चौथा महा सम्मेलन इसी कश्मीर घाटी में आयोजित करवाया था। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के अवशेष श्रीनगर शहर से थोड़ी दूरी पर ही मिले हैं।
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    इस्लाम तो कश्मीर-घाटी में चौदहवीं शताब्दी में आया। सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के स्वर्गीय मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पितामह पंडित बाल मुकंद रैना थे।
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