यहां देवी लक्ष्मी ने किया था इस पावन कुंड का निर्माण, जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
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    यहां देवी लक्ष्मी ने किया था इस पावन कुंड का निर्माण, जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

    उत्तराखंड की पावन भूमि पर ताड़केश्वर मंदिर स्थित है। कहा जाता है भगवान शिव का ये मंदिर इनके सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है, जो बलूत और देवदार वनों से बीचो-बीच स्थापित है।
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    मंदिर के पास कई छोटे-छोटे झरने भी बहते हैं। तो वहीं मंदिर परिसर में एक खास व रहस्यमयी कुंड स्थित है।
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    इससे जुड़ी लोक प्रचलित कथाओं की मानें तो इस कुंड का निर्माण स्वयं माता लक्ष्मी ने किया था। वर्तमान समय में इसी कुंड से पानी लेकर मंदिर में स्थित शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
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    आस पास के निवासी बताते हैं कि यहां सरसों का तेल तथा शाल के पत्तों को लाना वर्जित है।
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    मंदिर से पौराणिक कथओं के बात करें तो प्राचीन समय में ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इस ही स्थल पर घोर तप किया था।
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    जब शिव जी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान दे दिया तो ताड़कासुर अत्याचारी हो गया।
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    जिसके बाद सभी देवताओं उसके अत्याचारकों से परेशान होकर भगवान शिव से प्रार्थना करने गए कि वह ताड़कासुर का अंत करें।
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    परंतु ताड़कसुर का अंत केवल शिव-पार्वती पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। अपने पिता भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करने पहुंचे। अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगने लगा।
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    जिसके बाद भोलेनाथ ने असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं। साथ ही साथ उसे वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी। यही कारण है कि इस मंदिर का नाम असुरराज ताड़कासुर के नाम से ताड़केश्वर प्रसिद्ध है।
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    इसके अलावा इस मंदिर को लेकर एक दंतकथा भी प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानि दंड देते थे।
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    जिनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं।
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    कहा यह भी जाता है ताड़कासुर से युद्ध व कार्तिकेय द्वारा उसका वध किए जाने के बाद भगवान शिव ने यहां पर विश्राम किया था।
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    जिस दौरान भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती 7 देवदार वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं।
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    जिस कारण आज भी यह मंदिर के पास स्थित 7 देवदार  वृक्षों की, देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है।