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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
जैसे कि आप सब जानते हैं आज शारदीय नवरात्रि चौथा दिन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। आज इसी खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि कुष्मांडा मां के प्राचीन मंदिर के बारे में जो बहुत ही खास माना जाता है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
बता दें हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित देवी कुष्मांडा के मंदिर की।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
बता दें इस प्राचीन मंदिर में देवी कुष्मांडी लेटी हुई मुद्रा में विराजित है। पिंड स्वरूप में यहां विराजमान देवी के पिंड से हर समय पानी रिसता रहता है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
जिसे लेकर मान्यता प्रचलित है इस पानी को पीने वाले जातक को अपनी हर छोटी-बड़ी बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
पौराणिक कथाओं व धार्मिक मान्यताओं की मानें तो जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था उस समय देवी कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। जिस कारण इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति भी कहा जाता है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
यहां मां कुष्मांडा लेटी हुईं मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता है। मान्यता है कि इस पानी को पीने से कई तरह के रोग दूर हो जाते हैं।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। यही कारण है कि इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
बताया जाता है देवी कूष्मांडा का ये मंदिर मराठा शैली में निर्मित किया गया था। यहां स्थापित मूर्तियां दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की है।
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शारदीय नवरात्रि: आप भी करें मां कुष्मांडा के इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन
लोक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में चंदीदीन भुर्जी ने करवाया था। बताया जाता है कि 1988 से ही इस मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है।