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हनुमान जी से जुड़ा ये रहस्य जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान!
रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णन किया गया है कि जब श्री रामचंद्र जी पहली बार ऋषि मुख पर्वत पर हनुमान से मिले थे तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण जी से कहा था।
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रामायण में दिए गए इस श्लोक का अर्थात यह है कि ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको वह नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता।
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यकीनन इस महान विभूति ने संपूर्ण व्याकरण का एक बार नहीं बल्कि अनेक बार अभ्यास किया है।
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क्योंकि इतने समय तक बोलने में इन्होंने किसी भी शुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया संस्कार संपन्न शास्त्रीय पद्धति से उच्चारण की गई इनकी वाणी दे को हासिल करने वाली है। रामायण के श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि हनुमान कोई वानर नहीं थे।
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तो वहीं हनुमान जी को समर्पित सुंदरकांड में भी वर्णन किया गया है- कि जब बजरंगबली जी अशोक वाटिका में राक्षसों के बीच में बैठी हुई देवी सीता को अपना परिचय देने से पहले सोचते हैं -
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यदि मैं देवी सीता को ब्रह्मा क्षत्रिय वैश्य के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूंगा तो माता सीता मुझे रावण समझकर डर से संत्रस्त हो जाएंगी।
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इस बनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही डरी हुई माता सीता और व्यतीत हो जाएंगी। और मुझे काम रूपी रावण समझकर भया तूर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देंगे।
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इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूंगा। इन सब बातों से ही प्रमाण मिलता है कि हनुमानजी चारों वेद व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषाओं के ज्ञाता भी थे।