आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    ईश्वरीय ऊर्जा समय-समय पर अपना एहसास कराती है। इस तरह के कई देवस्थान आज भी देखे जाते हैं।
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    इसी प्रकार का एक मंदिर है ‘बाणमाता का मंदिर’
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    जो अजमेर से खंडवा जाने वाली ट्रेन के रास्ते के बीच स्थित चित्तौडग़ढ़ जंक्शन से करीब 2 मील उत्तर-पूर्व की ओर सुप्रसिद्ध चित्तौडग़ढ़ किले में बना हुआ है।
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    देवी का यह मंदिर बहुत जागृत और चमत्कारिक माना जाता है। कहते हैं आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं।
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    आज से 1300 साल पूर्व बाप्पा रावल के बाण पर बैठ कर माता जी ने वर देकर बाप्पा रावल को चित्तौड़ का राज दिया था।
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    आरती के समय इस मंदिर में लगे त्रिशूल अपने आप हिलने लगते हैं

    बाण माता जी के आदेशानुसार बाण फैंका गया। बाण जहां गिरा वहीं आज मंदिर बना हुआ है। बाण फैंकने से यह बाण माता जी (बाणेश्वरी मां) कहलाईं।