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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
होली का त्योहार आते ही कभी ढोलक की थाप तथा मंजीरों पर चारों ओर फाग गीत गुंजायमान होने लगते थे, लेकिन बदलते परिवेश में ग्रामीण क्षेत्रों की यह परंपरा लुप्त सी हो गई है।
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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
एक दशक पूर्व तक माघ महीने से ही गांव में फागुनी आहट दिखने लगती थी, लेकिन आज के दौर में गांव फागुनी महफिलों से अछूते नजर आ रहे हैं। फागुन महीने में शहरों से लेकर गांवों तक में फाग गाने और ढोलक की थाप सुनने को लोगों के कान तरस रहे हैं।
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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
महाशिवरात्रि का पर्व आते-आते फाग गीतों की धूम मचती थी। ढोल मंजीरे व करताल की आवाजों के बीच फगुआ के गाने गूंजते थे, लेकिन आज भेदभाव व वैमन्शयता के चलते अब त्योहारों के भी कोई मायने नहीं रह गए हैं।
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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
इटावा ब्रज क्षेत्र में आता है और यहां पर उसी परंपरा के अनुसार त्योहार भी मनाए जाते हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे सिर्फ परंपराओं का निर्वाहन मात्र किया जा रहा है।
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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
आज होली पर फाग गायन नहीं बल्कि फिल्मी गीत चारों ओर सुनाई देते हैं। लोगों का मानना है कि टीवी की मनोरंजन संस्कृति के चलते जहां पुरानी परंपराएं दम तोड़ रही है।
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इटावा: होली पर पहले जैसी अब नहीं दिखती फाग की फुहारें
वहीं आज की युवा पीढ़ी पुरानी संस्कृतियों को सीखना नहीं चाहती है। यही कारण है कि होली के त्योहार पर फाग गायन अब धीरे-धीरे खत्म सा होता जा रहा है।