एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग सदियों बाद भी है अधूरा
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    एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग सदियों बाद भी है अधूरा

    भोजेश्वर मंदिर (जिसे भोजपुर मंदिर भी कहते हैं) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर नामक गांव में बना एक मंदिर है। यह मंदिर बेतवा नदी के तट पर विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है।
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    मंदिर का निर्माण एवं इसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (1010-1043 ई.) ने करवाई थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
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    हालांकि कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस स्थल के मूल मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई मानी जाती है। इसे ‘उत्तर भारत का सोमनाथ’ भी कहा जाता है।
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    यहां के शिलालेखों से 11वीं शताब्दी के हिंदू मंदिर निर्माण की स्थापत्य कला का ज्ञान होता है और पता चलता है कि गुंबद का प्रयोग भारत में इस्लाम के आगमन से पूर्व भी होता था।
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    मंदिर के बाहर लगे पुरातत्व विभाग के शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मंदिरों में सबसे ऊंचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार भी हिंदू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है।
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    मंदिर के निकट ही इस मंदिर को समर्पित एक पुरातत्व संग्रहालय भी बना है। इस मंदिर को उत्तर भारत का ‘सोमनाथ’ भी कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग है जिसका निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है।
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    भीम ने अज्ञातवास के दौरान अपने भाइयों के साथ मिलकर साढ़े 21 फीट ऊंचा भव्य शिवलिंग स्थापित किया था। ये एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस मंदिर की दूसरी विशेषता इसका अधूरापन है। यह मंदिर अधूरा क्यों है?
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    इसका प्रमाण तो नहीं मिला लेकिन स्थानीय कथाओं के अनुसार माता कुंती के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में पूरा करना था लेकिन मंदिर पूरा होता इससे पहले ही सुबह हो गई इसलिए आज भी यह मंदिर अधूरा ही है।