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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारेे में बताने जा रहे हैं जहां माता पार्वती के कर्णफूल यानि कान की बालियां गिरीं थीं।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
जिस कारण इस स्थल का नाम मणिकर्ण पड़ा। बताया जाता है कर्णफूल शेषनाग के पास था, जिसके बारे में मान्यता है यही कर्णफूल शेषनाग के पास था जो शिव जी प्राप्त हो गया जिससे महादेव क्रोधित हो गए थे।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
सबसे पहले बता दें कि कर्णफूल मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और देवी पार्वती नदियों के मध्य बसा है। जो समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित है।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
कहा जाता है हिंदू सिक्ख दोनों ही तरह के लोग यहां पहुंते हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर माता पार्वती का कर्णफूल यानी कि कान की बाली गिरी थी इसलिए यह जगह कर्णफूल कहलाई।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
इस स्थान से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती और शिव जी विहार पर निकले थे। उसी विहार के दौरान माता पार्वती का कर्णफूल अर्थात कान की बाली खो गई।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
तब स्वयं भोलेनाथ ने मां पार्वती के कर्णफूल ढूंढने का काम किया। लोक मत है कि कर्णफूल पाताल लोक में जाकर शेषनाग के पास पहुंच गई। तब शिव शंकर अत्यंत क्रोधित हुए।
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कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
शेषनाग ने कर्णफूल वापस कर दिया था। इसके अलावा इस समय से जुड़ी हुई एक अन्य मान्यता है कि शेषनाग जब कर्णफूल नहीं दे रहे थे तब उन्होंने फुंकार भरी। जिससे इस स्थान पर गर्म पानी के स्रोतों का निर्माण हुआ।