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कौन से हैं वो स्थल जहां पड़े थे श्री राम के चरण पड़े
सरयू जी का मार्ग बदलन: सरयू जी लगभग 40 कि.मी. उत्तर दिशा में चली गई हैं। मूल धारा के स्थान पर अब नदी की पतली सी धारा बहती है। कहीं-कहीं नदी के पेटे तथा विशाल झील व दलदली भूमि मिलती है।
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पुराने मार्ग पर बने अधिकांश चिन्ह लुप्त हो गए हैं। अत: मार्ग खोजने में कठिनाई रही है। प्राचीन मूल धारा को अब पुरानी सरयू अथवा छोटी सरयू कहते हैं। सरयू तथा पुरानी सरयू का अलगाव बिंदू कहा है। परिस्थितियों के कारणं खोजा नहीं जा सका।
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गंगा जी का मार्ग बदलना : सरयू जी की तरह गंगा जी ने भी अपना मार्ग बदला है। गंगा जी दक्षिण दिशा में बढ़ रही हैं कितना मार्ग बदला कहा नहीं जा सकता।
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सोनभद्र का मार्ग : उपर्युक्त दोनों नदियों की तरह सोनभद्र ने भी मार्ग बदला है। वाल्मीकि जी के अनुसार सोनभद्र पार करने के बाद लम्बी दूरी तय करके उन्हें गंगा जी के दर्शन होते हैं।
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लगता है कि नदियों के मार्ग बहुत बदल लेने से इनका संगम रामायण कालीन संगम स्थल से लगभग 100 कि.मी. आगे चला गया है। विश्वामित्र जी का आश्रम सिद्धाश्रम के नाम से प्राचीन क्षेत्र बक्सर है।
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लोक मान्यता के अनुसार श्री राम, लक्ष्मण जी तथा विश्वामित्र जी ने त्रिगना घाट से महानद सोनभद्र को पार किया था। यहां प्राचीन मूर्तियां खुदाई में मिली हैं। यह स्थान पुल से लगभग 8 कि.मी. दूर पड़ता है।
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार गौतम मुनि का आश्रम मिथिला के एक उपवन में था जहां अहिल्या शिला रूप में थी। यह स्थान अब अहियारी के नाम से प्रसिद्ध है। पहले यहां तपोवन था। यह आश्रम दरभंगा से पश्चिम उत्तर दिशा में लगभग 25 कि.मी. दूर है।
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अब भी यहां चारों दिशाओं में चार ऋषियों के आश्रम हैं। याज्ञवल्क (जगवन), शृंगी (सींगिया), भ्रंगी (भैरवा) तथा गौतम ऋषि का आश्रम स्थित है। आज भी इस मंदिर में बहुत श्रद्धा है तथा नए कार्य आरंभ करने से पूर्व तथा संस्कार होने से पूर्व लोग अहिल्या मां से आशीर्वाद लेने आते हैं।