ज्योतिर्लिंग न होते हुए भी विश्वप्रसिद्ध है पशुपतिनाथ मंदिर, ये है अंदर की बात
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    ज्योतिर्लिंग न होते हुए भी विश्वप्रसिद्ध है पशुपतिनाथ मंदिर, ये है अंदर की बात

    नेपाल में काठमांडू के हृदय में स्थित है विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर। यह हिंदुओं का सबसे बड़ा शिव मंदिर है। हालांकि मान्यता प्राप्त बारह ज्योतिर्लिंगों में पशुपतिनाथ का नाम नहीं है फिर भी पशुपतिनाथ को दैदीप्यमान लिंग माना जाता है।
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    पशुपतिनाथ मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर स्वर्ण कलश युक्त तीन शिखाएं हैं। चार सीढिय़ां उतर कर प्रांगण आता है। बीचों-बीच मुख्य मंदिर की पैगोडा शैली की छतें, गुम्बद, ध्वज, शिखर और छोटी-बड़ी अनेक मूर्तियां सुशोभित हैं।
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    प्रांगण में विशाल नंदी सोने की भांति दीप्तिमान हैं। उनके जरा आगे एक और हू-ब-हू छोटे नंदी विराजमान हैं। नंदी जी की दाईं ओर वीर मुद्रा में महावीर हनुमान जी हैं।
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    शिवलिंग के पश्चिमी मुख की तरफ बने पीतल के नंदी जी का निर्माण पशुपतिनाथ मंदिर के संस्थापकों की 20वीं पीढ़ी के राजा धर्मदेव ने करवाया था।
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    शिवलिंग कक्ष पशुपतिनाथ मंदिर के लम्बे-चौड़े आंगन के मध्य स्थित है। मंदिर के भीतर स्थापित शिवलिंग के चारों मुखों के ठीक सामने चारों दिशाओं के चार दरवाजे हैं। मंदिर के अंदर-बाहर की दीवारें चांदी की दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उभरती हैं।
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    मंदिर के दो प्रकोष्ठ हैं। भक्त शिवलिंग के दर्शन पहले द्वार से ही करते हैं। पुजारी भक्तों के प्रसाद, पुष्प, रुद्राक्ष और चढ़ावे को शिवलिंग से स्पर्श कराते हैं। यहां भक्तों को चंदन का टीका लगाने और अमृतपान कराने की प्रथा है।
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    पशुपतिनाथ का पंचमुखी लिंग है। जो लगभग एक मीटर ऊंचा है और काले पत्थर का बना है। सदियों से पंचामृत अभिषेक के नियमित जारी रहने के बावजूद न घिसना इसकी खासियत को सिद्ध करता है।
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    पशुपतिनाथ मंदिर स्थित पंचमुखी लिंग के चार मुख अलग-अलग दिशाओं में हैं और पांचवां मुख ऊपर की ओर है। चारों दिशाओं में बने प्रत्येक स्वरूप के दाएं हाथ में 16 माणिक की रुद्राक्ष माला और बाएं हाथ में कमंडल है।
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    शिवलिंग की पश्चिम पूर्व, उत्तर, दक्षिण और ऊपरी दिशा के मुख क्रमश: सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर और ईशान कहलाते हैं। ऊपरी दिशा या ईशान मुख पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है। यही लोक कल्याणकारी वरदाता शिव रूप है।
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    पशुपतिनाथ को छोटे-बड़े मंदिर समूहों का महा मंदिर कहा जा सकता है। पशुपति लिंग के उत्तरी मुख के सामने प्रांगण में शिव का विशाल त्रिशूल बना है। त्रिशूल पर डमरू और फरसा भी हैं। ऐसे दो त्रिशूल हैं- एक पीतल का और दूसरा लोहे का।
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    माघ और पौष माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पशुपतिनाथ को बारह बजे से सुबह चार बजे तक जरी के वस्त्रों और स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। पशुपतिनाथ का माहौल सदा शिवमय रहता है।  ‘जय शंभो!  जय शंभो’ के जयकारे दिन-रात गूंजते रहते हैं।