>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
बताया जाता है मुंडेश्वरी देवी मंदिर में मौज़ूद एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का अस्तित्व 635 ई. में भी था। तो वहीं कहा जाता है इस मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा 7वीं शताब्दी से पहले गायब या चोरी हो गई थी।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
जिसके बाद शैव धर्म का महत्व बढ़ता चला गया और साथ ही विनीतेश्वर जी, मंदिर के इष्टदेव के रूप में माने जाने लगे।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
यहां आने वाले लोग बताते हैं कि इस मंदिर में जिस बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, उसकी जान नहीं ली जाती।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
दरअसल होता यूं है कि बलि चढ़ाते समय माता की मूर्ति के सामने ही पुजारी चावल के कुछ दाने मूर्ति को स्पर्श करवाने के बाद बकरे के उपर फेंकता है।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
जिसके बाद ऐसा प्रतीत होता है मानो बकरा बेहोश सा हो गया हो जैसे उस में प्राण ही न बचे हों।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
परंतु कुछ ही समय के बाद फिर इसी प्रकार जब दोबारा बकरे पर चावल फेंके जाते हैं व बकरा उठ जाता है।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
मान्यता है कि बलि चढ़ाने की इस क्रिया के पूरे होने के बाद बकरे को छोड़ दिया जाता है।
<
>
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
कहा जाता है इस मंदिर का मार्केण्डेय पुराण के साथ भी संबंध है।
<
X
बलि देने का है यहां अनोखा अंदाज़, मार कर नहीं बल्कि यूं दी जाती है बकरे की बलि
इसके अनुसार मां दुर्गा चंड व मुंड नामक राक्षसों का वध करने के लिए इसी स्थान पर प्रकट हुई थी।