महाभारत काल में इस पौधे की रही है खास अहमियत, जानते हैं आप!
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    महाभारत काल में इस पौधे की रही है खास अहमियत, जानते हैं आप!

    आज हम आपको एक औषधीय पौधे के बार में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में मान्यता है कि इस पौधे का महाभारत काल के युद्ध में प्रयोग किया गया था।
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    ल्यकर्णी नामक पौधा अति दुर्लभ प्रजाति का पौधा माना जाता है। पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार महाभारत काल में युद्ध के दौरान इस पौधे का इस्तेमाल तब किया जाता है जब युद्ध में कोई योद्धा तीर, भाला और तलवार से घायल होने वाले सैनिकों के घाव को ठीक करना होता था।
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    इसकी पत्तियों और छाल के रस को कपड़े में डूबा कर गंभीर घाव में बांध दिया जाता था जिसके चलते घाव बिना किसी चीर-फाड़ के बाद आसानी से कुछ दिनों में भर जाता था घाव भरने के लिए शल्य क्रिया में उपयोग किए जाने की वजह से ही इसका नाम शल्यकर्णी रखा गया है।
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    रीवा में शल्यकर्णी के संरक्षण के लिए कई वर्षों से प्रयास चल रहे हैं यहां के छुहिया पहाड़ में इसके कुछ पुराने पेड़ पाए गए थे
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    जिनकी शाखाओं से नए पौधे अनुसंधान वृत्त की ओर से विकसित किए गए हैं इसके अलावा जिले के ककरहटी के जंगल से भी कुछ पौधे यंहा पर लाए गए हैं लेकिन वर्तमान में केवल रीवा के वन अनुसंधान एवं विस्तार वृत्त में ही इसे विकसित किया जा रहा है।
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    शल्यकर्णी औषधि के बारे में चरक संहिता में भी उल्लेख मिलता है जिसमें कहा गया है कि यह दुर्लभ प्रजाति की औषधि पहले शल्यक्रिया के वरदान मानी जाती थी।