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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
आप में से लगभग लोगों ने खजुराहो का नाम सुना होगा जो न केवल भारत देश में बल्कि पूरी दुनिया में फेमस है। ये एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहां एक मंदिर के अंदर कितने और मंदिर स्थापित है।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
परंतु क्या आप जानते हैं ऐसा ही एक मंदिर छत्तीसगढ़ के कवर्धा से करीब 10 किमी दूर मैकल पर्वत समूह के बीचों बीच भी स्थित है। जिसे मिनी खजराहो (Mini Khajuraho) के नाम से जाना जाता है। बता दें इस मंदिर का वास्तविक नाम है भोरमदेव मंदिर।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
जो करीबन 1 हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है। बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण खजुराहो और कोणार्क के मंदिर की तरह किया गया है।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
मंदिर की सुंदरता बनावट ऐसी है कि जो भी इसे देखता है वह बिना इसकी तारीफ किए नहीं रह पाता। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि उसी भोरमदेव मंदिर को पुरातत्व की नजर लग गई है।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
विभाग की अनेदखी के कारण मंदिर का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है। दअरसल मंदिर में जगह-जगह बारिश के पानी का रिसाव हो रहा है। जो कि मंदिर के लिए खतरा बना हुआ है। बारिश होने पर स्थिति और ज्यादा खराब होती जा रही है।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
मंदिर में घुसने से लेकर गर्भगृह तक जगह जगह पानी टपकता रहता है। तीन साल पहले पुरातत्व विभाग द्वारा बढ़ती समस्या को देखते हुए मंदिर की उचित रखरखाव के लिए केमिकल पॉलिश करने आदि जैसी कई गाइडलाइन्स को जारी किया गया।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
मंदिर के पास बड़े पेड़ को काटने व मंदिर के चारों ओर 5 फीट तक गहरा करके सीमेंट से मजबूती देने का दावा किया गया था। साथ ही मंदिर में चावल को विशेष रूप से प्रतिबंधित किया गया था।
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मैकल पर्वत से घिरा हजार साल पुराना मंदिर, लड़ रहा अपने अस्तित्व की लड़ाई
लेकिन आज तीन साल बाद भी कोई काम नहीं किया गया। वहीं मंदिर परिसर में जगह जगह चावल न डालने की अपील चस्पा करने के बाद भी लोगों मे भी जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है। बता दें भोरमदेव मंदिर की ख्याति आज देश ही नही विदेशों तक फैली हुई है।