होली का असली लुत्फ उठाना है तो जाएं यहां
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    होली का असली लुत्फ उठाना है तो जाएं यहां

    बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी जिसे बनारस भी कहा जाता है यहां होली के दिन लोग रंगों से नहीं बल्कि मुर्दों की चिताओं की राख या भस्म से एक-दूसरे को रंगते हैं।
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    मान्यता के अनुसार काशी के महाश्मशान पर जलती चिताओं की चिता से होली खेली जाती है।
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    बता दें इस बार होलिका दहन 20 मार्च दिन बुधवार और होली का पर्व 21 मार्च यानि गुरुवार को मनाया जाएगा।
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    कहा जाता है कि एक और जहां पूरा देश अनेक प्रकार के रंगों से होली खेलता है तो वहीं दूसरों ओर बनारस के मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव के भक्त श्मशान की राख से होली खेलते हैं।
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    बता दें ये राख कोई आम राख नहीं होली बल्कि चिताओं की भस्म होती है।
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    बहुत से लोग होंगे जिन्हें नहीं पता होगा कि इस पीछे का असल कारण भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है।
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    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती के लौट आने की खुशी में भगवान शंकर ने चिता की राख से होली खेली थी।
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    बताया जाता है कि यहां कारण है कि यहां के लोग अपने प्रभु यानि भगवान शंकर को रिझाने के लिए चिताओं की राख से होली खेलते हैं।
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    बताया जाता है कि होली के दिन भस्म होली के आरंभ से पहले श्मशान घाट के देवता महाश्मशानाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। जिसे बाद भक्त ढोल-नगाड़ों के साथ श्मशान घाट पर भस्म होली खेली जाती है।
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    मान्यता है कि जो भी भक्त होली के दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट पर होली खेलने जाता है उस पर भगवान शंकर की कृपा होती है। इसके साथ ही उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और उसकी सभई मनोकामनाएं पूरी होती हैं।